गुरुवार, 4 सितंबर 2014

चारदीवारियों में कैद



चारदीवारियों में कैद



आप और हम

बन्द हैं

तन से

मन से

विचार से

चारदीवारियों के

बीच कैद,

घुटता है मन

बिना हवा-रोशनी

और धूप के

चारों ओर

पसरा है सन्नाटा

साथ है कोई तो

बस, तन्हाई

और अँधेरा

घुटन-टूटन

और अकुलाहट के बीच

बँध हुआ है जीवन

काश !

कभी हो पाता ऐसा

चारदीवारियों का

अस्तित्व मिट जाता

और हम बन्धन मुक्त हो

आजाद पंछी की तरह

उड़ पाते

दूर-बहुत-दूर

नीले आकाश में !!

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